नगर विकास विभाग: एक परिचय

सभ्यता के विकास के साथ शहरीकरण की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। शहरी क्षेत्रों में अवस्थापना तथा मूलभूत नागरिक सुविधाओं पर अपेक्षाकृत अधिक दबाव होने के कारण कालान्तर से ही शहरों के सुनियोजित विकास की आवश्यकता का अनुभव किया जाता रहा है। इसी क्रम में प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों को एक स्वतंत्र इकाई, नगरीय स्थानीय निकाय, के रूप में अंगीकार किया गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 6166 नगरीय स्थानीय निकायें हैं, जिनमें से सर्वाधिक 707 उत्तर प्रदेश में हैं, जो कुल नगरीय स्थानीय निकायों की संख्या का लगभग 11 प्रतिशत है। स्पष्टतः उत्तर प्रदेश भारत वर्ष में सर्वाधिक जनसंख्या के साथ ही सर्वाधिक नगरीय स्थानीय निकायों वाला प्रदेश है। प्रदेश की इन 734 नगरीय स्थानीय निकायों में 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद एवं 517 नगर पंचायत हैं, जिनमें प्रदेश की लगभग 24 प्रतिशत से अधिक आबादी निवास करती है। नगरीय स्थानीय निकायों के क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या को मूलभूत नागरिक सुविधाएं यथा- स्वच्छ पेयजलापूर्ति, सड़कें/गलियां, जल निकासी, सफाई व्यवस्था, कूड़ा निस्तारण, सीवरेज व्यवस्था, मार्ग प्रकाश, पार्क, स्वच्छ पर्यावरण, आदि उपलब्ध कराया जाना, इन नागर स्थानीय निकायों का कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व है। प्रदेश की नागर स्थानीय निकायों के कार्यों पर प्रशासकीय नियंत्रण के साथ-साथ नगरीय क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास एवं विस्तार हेतु विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराये जाने हेतु नगर विकास विभाग का गठन किया गया। नगर विकास विभाग द्वारा उक्त कार्यों के अतिरिक्त शहरों में सेनिटेशन, पर्यावरण संरक्षण तथा नदियों/झीलों में प्रदूषण नियंत्रण आदि का कार्य भी किया जा रहा है। स्वतंत्रता के पूर्व राज्य सरकार स्तर पर इस विभाग का नाम लोक स्वास्थ्य विभाग था, जिसे बाद में स्थानीय स्वायत्त शासन विभाग नाम दिया गया। कालान्तर में इसे आवास एवं नगर विकास विभाग कहा गया। बाद में इस विभाग को दो अलग-अलग विभागों यथा आवास एवं शहरी नियोजन विभाग तथा नगर विकास विभाग में विभाजित कर दिया गया। शासन स्तर पर नगर विकास विभाग का कार्यालय बापू भवन में अवस्थित है। कार्यों के सम्पादन हेतु विभाग को 09 अनुभागों में बांटा गया है। इसके अतिरिक्त गंगा सेल व लेखा अनुभाग भी है। वर्तमान में इस विभाग के अधीन निम्न संगठन/संस्थान कार्यरत हैं –

स्थानीय निकाय निदेशालय:

भारत सरकार द्वारा गठित रूरल अरबन रिलेशनशिप कमेटी की संस्तुतियों के आधार पर उत्तर प्रदेश शासन द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1971 में स्थानीय निकाय निदेशालय के गठन की परिकल्पना की गई जो व्यावहारिक रूप में वर्ष 1973 में गठित किया गया। स्थानीय निकाय निदेशालय में एक निदेशक होता है, जो अपने अधिनस्थ अन्य कार्मिंको के सहयोग से नगरीय स्थानीय निकायों के कार्यकलापों, वित्तीय स्थिति एवं धनराशियों के उचित रखरखाव पर दृष्टि रखता है तथा शासन एवं नगरीय स्थानीय निकायों के मध्य सम्पर्क स्थापित करने हेतु एक माध्यम है। निदेशालय द्वारा इन निकायों में कार्यरत केन्द्रीयित सेवा के कार्मिकों के अधिष्ठान संबंधी प्रकरणों तथा अकेन्द्रीयित सेवा के कार्मिकों के विभिन्न प्रकार के प्रकरणों का निस्तारण किया जाता है। भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित जेएनएनयूआरएम कार्यक्रम के यूआईजी एवं यूआईडीएसएसएमटी कार्यान्श निदेशालय स्टेट लेवल नोडल एजेन्सी नामित है। राज्य सरकार की आदर्श नगर योजना का क्रियान्वयन भी निदेशालय के माध्यम से हो रहा है।

उत्तर प्रदेश जल निगम:

प्रदेश में जलापूर्ति एवं सीवर व्यवस्था के संचालन हेतु वर्ष 1927 में जन स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग का गठन किया गया था, जिसे वर्ष 1946 में स्वायत्त शासन अभियंत्रण विभाग कर दिया गया। वर्ष 1975 में उत्तर प्रदेश जल संभरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम, 1975 के अन्तर्गत वर्तमान उत्तर प्रदेश जल निगम की स्थापना की गयी। उक्त अधिनियम के अन्तर्गत 05 कवाल नगरों, बुन्देलखण्ड, गढ़वाल तथा कुमायू क्षेत्रों के लिये एक-एक जल संस्थान भी स्थापित किये गये। बुन्देलखण्ड क्षेत्र हेतु स्थापित झांसी एवं चित्रकूट जल संस्थान प्रदेश में कार्यरत है, गढ़वाल एवं कुमायू जल संस्थान उत्तराखण्ड राज्य में सम्मिलित है। प्रदेश के नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों मंे जल सम्पूर्ति/जलोत्सारण /नदियों के प्रदूषण नियंत्रण के निर्माण कार्य जल निगम द्वारा कराये जाते हैं, जिसका रखरखाव संबंधित स्थानीय निकाय/जल संस्थान द्वारा किया जाता है। ग्रामीण पेयजल योजनाओं का रखरखाव बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जल संस्थानों द्वारा तथा प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में जल निगम द्वारा किया जाता है। भारत सरकार की जेएनएनयूआरएम कार्यक्रम के यूआईजी एवं यूआईडीएसएसएमटी कार्यान्श की परियोजनाओं के लिये उत्तर प्रदेश जल निगम कार्यदायी संस्था नामित है।

निर्माण एवं परिकल्प सेवाएं (कन्स्ट्रक्शन एण्ड डिजाइन सर्विसेज-सी.एण्ड डी.एस):

सी0एण्डडी0एस0, जल निगम की व्यवसायिक इकाई है, जो 1989 में अस्तित्व में आयी। इसके प्रमुख कार्य परामर्श सेवायें, परियोजना प्रबंधन, भूमि विकास, निर्माण आदि हैं। यह विंग 01 निदेशक, जो कि उ0प्र0 जल निगम के मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारी होते है, के अधीन कार्यों का सम्पादन करती है। वर्तमान में विंग में 05 मुख्य महाप्रबन्धक, अधीक्षण अभियंता, 13 महाप्रबन्धक, अधीशासी अभियंता स्तर के अधिकारी भी कार्यरत है, जिनके अधीन 51 यूनिटें उत्तर प्रदेश में तथा 04 यूनिटें प्रदेश से बाहर कार्यरत हैं। इन यूनिटों के इंचार्ज सहायक अभियंता स्तर के परियोजना प्रबंधक हैं, जिनके अधीन अवर अभियंता कार्यरत हैं।

क्षेत्रीय नागर एवं पर्यावरण अध्ययन केन्द्र:

भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय के अन्तर्गत 1968 में स्थापित इस केन्द्र को प्रदेश सरकार द्वारा 1976 से वित्तीय योगदान दिया जा रहा है। प्रदेश की नागर निकायों के जनप्रतिनिधियों एवं केन्द्रीयित सेवाओं के अधिकारियों की क्षमता विकास हेतु इस केन्द्र के माध्यम से विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि का आयोजन किया जाता है। भारत सरकार के शहरी विकास तथा आवास एवं गरीबी उमशमन मंत्रालयों के तत्वाधान में संचालित समस्त योजनाओं के अधीन प्रदेश के अधिकारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन इस केन्द्र द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह केन्द्र राज्य सरकार एवं नागर निकायों को परामर्शी सेवायें एवं शोध अध्ययन का प्रतिपादन करके नगर विकास के नीति निर्माण एवं कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सक्रिय योगदान देता है।

उत्तर प्रदेश राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण:

गंगा नदी उत्तर प्रदेश में बिजनौर की सीमा से प्रवेश कर प्रदेश के 23 जनपदों से गुजरती हुई जिला बलिया की सीमा से बिहार राज्य में चली जाती है। प्रदेश के 26 नगर इसके किनारे बसे हुए हैं। इसके अतिरिक्त 10 प्रमुख नगर इसकी सहायक नदियो यथा यमुना, गोमती, काली, रामगंगा आदि के किनारे बसे हुए हैं। जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप इन नगरों से जनित घरेलू और औद्योगिक उत्प्रवाह से इन नदियों में प्रदूषण की वृद्धि हो रही है। भारत सरकार द्वारा गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 (1986 का 29) की धारा-3 की उपधारा (1) और उपधारा (3) के अन्तर्गत गंगा नदी के प्रदूषण का प्रभावी रूप से उपशमन करने और गंगा नदी के संरक्षण के उपाय करने हेतु ’’राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’’ (एन.जी.बी.आर.ए.) का गठन पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना दिनांक 20.02.2009 के द्वारा किया गया है। उक्त अधिसूचना के प्रस्तर-10 में की गई व्यवस्था तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) की धारा-3 की उपधारा-(3) के अन्र्तगत उत्तर प्रदेश राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण का गठन अधिसूचना दिनांक 30 सितम्बर, 2009 के द्वारा किया गया है। प्राधिकरण के अध्यक्ष मा0 मुख्यमंत्री जी हैं तथा मा0 मंत्री जी, पर्यावरण, वन, वित्त, शहरी विकास, सिंचाई, लोक निर्माण विभाग, आवास, उ0प्र0 सरकार पदेन सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त महापौर, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद व अध्यक्ष राज्य सलाहकार बोर्ड को पदेन सदस्य बनाया गया है। प्रमुख सचिव, नगर विकास विभाग प्राधिकरण के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं, जिनके अधीन वर्तमान में 01 एडीशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर, टेक्निकल एडवाइजर एवं मुख्य अभियंता, रीवर स्पेश्लिस्ट, टेक्निकल मैनेजर एवं असिस्टेन्ट जीआईएस एक्सपर्ट कार्यरत हैं।

जल संस्थान/जलकल:

नगर विकास विभाग के अधीन 07 जलकल/जल संस्थान यथा- लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, झांसी एवं चित्रकूट बांदा है। इनका मुख्य दायित्व शहरी क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति तथा सीवर व्यवस्था का कार्य सुनिश्चित करना है।

नगरीय स्थानीय निकाय:

उत्तर प्रदेश में कुल 707 नगरीय स्थानीय निकायें हैं, जिसमें 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद एवं 490 नगर पंचायत हैं।

उत्तर प्रदेश नगर पालिका वित्तीय संसाधन विकास बोर्ड:

भारत सरकार के 13वें वित्त आयोग द्वारा प्रस्तावित सुधारों के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘उत्तर प्रदेश नगर पालिका वित्तीय संसाधन विकास बोर्ड अधिनियम, 2011’ उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या—11 सन् 2011 बनाया गया तथा उसकी धारा—4 की उपधारा 1 के अधीन अधिसूचना संख्या- 649/नौ-9-2011-16ज/2011, दिनांक 30 मार्च, 2011 द्वारा ‘उत्तर प्रदेश नगर पालिका वित्तीय संसाधन विकास बोर्ड’की स्थापना की गई। बोर्ड में 01 अध्यक्ष, 04 सदस्य एवं 01 पदेन सदस्य हैं। बोर्ड के उद्देश्य एवं कर्तव्य निम्नवत हैं:
1. विभिन्न नगर पालिकाओं की वित्तीय क्षमता की समीक्षा करना और राजस्व के विभिन्न स्त्रोतों की दक्षता का मूल्यांकन करना, जिसमे इसमे वृद्वि की जा सके और नये स्त्रोतों का भी सृजन किया जा सके।
2. राज्य में नगर पालिकाओं की सभी सम्पत्तियों की गणना करना या गणना कराना और एक डाटाबेस विकसित करना।
3. सम्पत्ति और जलकर तथा अन्य राजस्व संसाधन प्रणाली की समीक्षा करना, नगर पालिकाओं की सम्पत्तियों का मूल्यांकन तथा ‘कर’ की दरों और करेत्तर मदों के लिए उपयुक्त आधार सुझाना।
4. सम्पत्तियों के मूल्यांकन के लिए पारदर्शी प्रक्रिया को अभिकल्पित करना और सूत्रपात्र करना।
5. सम्पत्ति कर विवादों को न्याय निर्णीत करना।
6. मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और निष्पक्ष तुलना करने के लिए मूल्यांकनों के प्रकटीकरण को सुगम बनाना।
7. समय-समय पर कर प्रणाली के पुनरीक्षण के लिए तौर-तरीके संस्तुत करना।
8. राज्य सरकार के सरकारी बजट में वार्षिक कार्ययोजना प्रकाशित करना।
9. राज्य सरकार को नगर पालिकाओं की सम्पत्तियों के मूल्यांकन और नगरपालिका राजस्व कीअभिवृद्धि के लिए सलाह देना।
10. राज्य सरकार द्वारा अपेक्षा किए जाने पर अथवा नगरपालिकाओं द्वारा अनुरोध किए जाने पर संसाधनों में वृद्धि इत्यादि से सम्बन्धित अन्य कृत्यों को निष्पादित करना।